आज मंदिर गया ... जाकर अच्छा लगा...लेकिन एक चीज जो देखने को मिली वह कम अच्छी लगी कि गर्मी आते ही महिलाओं के कपड़े कम हो गए हैं । समझ में नही आया कि मंदिर आया हूं कि या किसी फैशन परेड का हिस्सा बनने...माना कि सबको आजादी हैं और अपने सोच को प्रकट करने का अधिकार हैं । लेकिन ये कैसी आजादी । ये कैसा आधुनिकपन को प्रकट करनें का तरीका । अगर ये तरीका सही हैं तो वो दिन दूर नहीं जब हम भी विदेशी नंगेपन वाली सभ्यता को अपना लेगें । वो दिन दूर नहीं जब भारतीय संस्कृति किताबों में सिमट कर रह जाएगी । और हमारे आने वाली पीढ़ी किताबों में अपने पूर्वजों की संस्कृति को पढ़ेगें ।
हो सकता हैं कि बहुत लोग मेरे बात से सहमत होगें और बहुत सारे लोग ऐसे भी होगें जो सहमत नहीं होगें । लेकिन ये अभिव्यक्ति में शालीनता का ख्याल रखना चाहिए । माना मंदिर में भले लोगों का ध्यान भगवान पर होता हैं लेकिन फिर भी इस तरह के शोबाजी से बचना चाहिए । क्योकिं आप मंदिर आए ना कि कियी पार्टी में शरीक होने के लिए नहीं । आप कह सकते हैं कि ये हमारा अधिकार हम कुछ भी करे । लेकिन इसका मतलब ये नही कि आप फैशनबाजी में नंगे चले आएगें । लोग भले कुछ भी तर्क दें पर तर्क देने से पहले इस पर गौर जरूर फरमाना चाहिए कि क्या ये सही है।